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Emotional Short Story
Anupama  

“अपना कौन?”

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“काकी क्या कर रही हो इतनी देर से! पोछा लेकर सो गई कमरे में क्या… ?”जल्दी -जल्दी निपटाओ सारे काम को मुझे देर हो रही है।

यह काकी भी न एक नंबर की कामचोर है पता नहीं कैसे मांजी को यह पसंद आती थी। एकदम से बैलगाड़ी है। सुमि बड़बड़ाते हुए स्नान करने के लिए बाथरूम में घुस गई। नहाकर निकली तो फिर से आवाज लगाई -“काकी मेरा नास्ता जल्दी से टेबल पर लगाओ मैं तैयार होकर आती हूँ।”

कहते हुए वह अपने कमरे में चली गई। दस मिनट बाद कमरे से बाहर निकलकर डाइनिंग टेबल के पास आई, देखा तो टेबल पर कुछ भी नाश्ते के लिए नहीं था।

वह जोर से चीखते हुए बोली-” काकी जिंदा हो की नहीं!”

उसके चीखने की आवाज सुनकर बाहर लॉन में बैठकर पेपर पढ़ रहा सुमित भाग कर अंदर आया ।

“क्या हुआ क्यों आसमान सर पर उठा कर रखी हो?”

यह जो नौकरानी… नहीं नहीं गलत बोल दिया मैंने तुम लोगों ने जो महारानी को पाल कर रखा है न अब मेरे लिए सिर दर्द बन चुकी है समझे।”

अरे! तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या! धीरे बोलो कहीं काकी सुन लेगी तो… फिर क्या सोचेगी!

“वह क्या सोचेगी यह बैठ कर तुम सोचते रहो मेरे पास टाईम नहीं है ।”- सुमि ने आंखें नचाते हुए कहा।

अच्छा थोड़ा कूल रहो मैं देख कर आता हूं कि काकी क्या कर रही है। सुमित बाहर जाकर देखा तो काकी चौखट पर निढाल पड़ी थी। वह दौड़ कर उनके पास गया और चिंतित स्वर में पूछा-” काकी क्या हुआ..क्या हुआ कुछ तो बोलो!”

काकी की आँखें बंद थी। सुमित एक दम से घबड़ा गया। छूकर देखा तो वह बुखार से तप रही थी।

वह जोड़ से चिल्लाया सुमि जल्दी बाहर आओ,देखो न काकी को क्या हो गया!

“तुम्हीं देखो काम नहीं करना पड़े इसीलिये नाटक कर रही है।”

सुमित ने गुस्से में कहा-“

ओ गॉड कैसी निर्दयी है यह! जरा भी सहानुभूति नहीं है इसके दिल में!”

सुमित जल्दी -जल्दी हाथ और पैर के तलवों को रगड़ने लगा। काकी ने धीरे से आँखें खोलकर कुछ इशारा किया सुमित तुरंत समझ गया।

कैसे नहीं समझता, बचपन से काकी के आँचल की छाया में पला था ।वह काकी के सभी आव -भाव से परिचित था। उसे याद है जब वह चार साल का था तभी काकी एक बच्चे के साथ घर के दरवाजे पर बैठी मिली थी। माँ ने उसे खाना कपड़ा दिया था और कुछ पैसे भी दिये थे ताकि वह जहां चाहे वहां चली जाए,

पर वह नहीं गई दो दिन तक वहीं बैठी रही। माँ के द्वारा बहुत पूछने पर बताया था कि उसके पति इस दुनियां में नहीं है और ससुरालवालों ने घर से निकाल दिया है।

काकी की व्यथा ने माँ के मन को झकझोर दिया था,

उनकी आँखें भर आईं थीं उन्होंने काकी को अंदर बुला लिया था और तबसे वह इस परिवार की सदस्य हैं और मेरी प्यारी काकी। इस तरह से मुझे दो -दो माँओ का प्यार मिलता रहा है।

पिछले साल माँ इस दुनिया से दूर चली गई। उनके जाते ही जैसे मेरे साथ काकी भी अनाथ हो गई थी। बेचारी अब बूढ़ी हो चुकी हैं सो थोड़ा काम धाम जल्दी-जल्दी नहीं कर पातीं। इसका मतलब यह नहीं है कि कोई उन्हें कामचोर कहे। सुमित को सुमि पर बहुत गुस्सा आ रहा था।

सुमित दौड़ कर पानी लेकर आया ।एक हाथ से उसने काकी के सिर को उपर उठाया और दूसरे हाथ से मुँह में ग्लास सटा दिया। एक घूंट पानी पीने के बाद काकी उसके कंधों पर ही निढाल होने लगी। सुमित उठाने की कोशिश करने लगा।

तभी पिछे से एअर बैग घसीटते सुमि बाहर निकली सुमित को देखते ही बिफर पड़ी-” मुझे यहाँ देर हो रही है और तुम वात्सल्य- प्रेम में गोते लगा रहे हो मुझे स्टेशन छोड़ने नहीं जाना है क्या?”

सुमित को गुस्सा आ गया उसने सुमि को देखे बिना ही बोल दिया मेरे बगैर नहीं जा सकती हो तो छोड़ दो अपनी मीटिंग मैं काकी को छोड़कर नहीं जा सकता समझी…।

सुमि बड़बड़ाती पैर पटकते हुए काकी को भला बुरा कहते चली गई।

सुमित ने तय कर लिया था कि अब वह काकी को अपने घर में एक आया की तरह नहीं रहने देगा। उसे उसके बेटे के पास दूसरे शहर में पहुंचा देगा ।

वह अपनी पत्नी के चिड़चिड़े स्वाभाव से परिचित था। उसकी पत्नी काकी को काकी तो कहती थी पर उपर से। व्यवहार तो वह आया जैसी ही करती थी। फिर भी बेचारी काकी कभी कुछ नहीं बोलती थी पता नहीं किस मिट्टी की बनी हुई थी या फिर …परिस्थितियों का दास भी तो बन जाता है इंसान।

दो दिन तक सुमित ने काकी की सेवा में जी -जान लगा दिया। अब वह बिलकुल स्वस्थ हो गई थी। सुमित सोच रहा था कि सुमि के आने से पहले वह काकी को उनके बेटे के पास भेज दे । वह पत्नी के व्यवहार से बहुत दुःखी था क्योंकि सुमि की कड़वी जुबान दिनोंदिन और नीम की तरह होती जा रही थी।

सुमित ने अपना बेड काकी के बगल में ही लगा लिया था। रात में भी उठ -उठ कर वह काकी की देखभाल करता था। धीरे-धीरे काकी स्वस्थ होने लगी थी।

उस रात सोने से पहले उसने हिम्मत जुटा कर काकी से कहा-” काकी मैं सोच रहा था कि -” माँ तो अब है नहीं मैं आपको कल आपके बेटे के पास पहुंचा दूँ। आप को अब अपनों के साथ ही रहने में आराम मिलेगा ।”

काकी जैसे -तैसे बिछावन पर से उठ कर बैठ गई उनकी आंखों से झर-झर आंसू गिरने लगे सुमित के हाथों को पकड़ कर बोली-” बेटा तुम नहीं चाहते कि मैं यहाँ रहूं तो मैं कहीं भी चली जाऊँगी ।”

“बेटा, अब इस सूनी आंखों में कोई सपने नहीं हैं।

लेकिन इस बुजुर्ग आंखों को इतना तजुर्बा तो है कि यह पहचान ले कि अपना कौन है? वह जो पांच साल से झांकने नहीं आया कि मैं जिंदा हूं या मर गई…या वह जो मेरी बूढ़ी काया के लिए सांसे सहेज रहा है।”

“बेटा तुम चिंता मत करो! मैं तुम पर बोझ नहीं

रहूंगी। बहुत बड़ी दुनियां है। मैं कहीं भी चली जाऊँगी।”

सुमित अपने आंसूओं को रोक नहीं पाया और काकी के थरथराते दोनों हाथों को अपने आंखों से लगा कर भर्राई आवाज में बोला-“काकी मुझे माफ कर दो ! मेरी दुनियां तो तुम्हारे गोद में ही है मुझे अपना बेटा नहीं मानती क्या !”

स्वरचित एवं मौलिक

डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा

मुजफ्फरपुर,बिहार

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