“आखिरी राखी”
तूझे मना किया था न कि मुझे दूकान पर घसीट कर मत ले आना,मुझे कुछ लेना नहीं है।
अरी मेरी माँ…मत लेना साथ तो चलो। चलती है या नहीं?
तनु की बांहें खींचते हुए प्रिया बोली-” तुम्हें पता है शिवम के दोस्त ने जेनरल-स्टोर खोला है। शिवम कल कह रहा था कि दीदी कुछ लेना हो तो वहीं से लेना। बेचारा नया-नया है कुछ तो उसपर उपकार करो वहां चलकर..
इतनी जिद देख तनु तैयार हो गई प्रिया के साथ जाने के लिए पर उसे चेता दिया जितनी जल्दी में जो लेना हो ले लेना मुझे पसंद नहीं मंदिर के नाम पर बाजार में घूमना समझी!
मैं जानती हूं तेरी पसंद को ! तू अपनी दोस्त के लिए नहीं चलेगी बोल…. ठीक है पर जल्दी करना।
पिछले एक साल से तनु ने तो कहीं जाना ही छोड़ दिया था । अगर बहुत जरूरी काम हुआ तो ही घर से बाहर निकलती थी । हर बात पर हंसने खिलखिलाने वाली तनु की हसीं जैसे होठों का रास्ता ही भूल गई थी। हमेशा गुमसुम, जाने किस सोच में खोई हुई रहती है । हमेशा उसके चेहरे पर एक अपराध -बोध झलकता है। कैसे नहीं होता ना वह जिद करती ना उसका भाई छुट्टी लेकर आता। शादी में तो आना ही था नवम्बर में उसे पूरे एक महिने की छुट्टी मिलनेवाली थी। दूसरा, दकियानूसी ससुराल वालों ने मनहूस कह कर रिश्ता तोड़ दिया था।
वो तो भला हो कि प्रिया जैसी सहेली उसे मिली है वह हर संभव उसे खुश रखने का प्रयास करती रहती है, किसी न किसी बहाने उसे घर से बाहर लेकर जाती ताकि उसके मन में जो दर्द घर बना कर बैठा है उससे छुटकारा मिल सके।
अभी सावन में शिवजी के मंदिर जाने का अच्छा बहाना मिल गया उसे। जबरदस्ती ले जाया करती है जल चढ़ाने के बहाने। दोनों सहेलियों के बीच दूध- पानी सा प्यार है । कहते हैं ना कि असली दोस्ती का रिश्ता शरीर और साँस की तरह होता है एक के बिना दूसरा बेकार….।
दूकान पर दोनों पहुंची , प्रिया के बताने पर कि वह शिवम की बहन है दूकानदार (शिवम का दोस्त)बहुत खुश हुआ बोला-“
दीदी क्या चाहिए आपको ?”
प्रिया ने कहा एक दर्जन हरी चूडियां और दो पैकेट मेहंदी दे देना ।
और कुछ चाहिए दीदी?
नहीं!
तनु तूझे कुछ लेना है क्या?
नहीं… नहीं जल्दी चलो माँ परेशान हो रही होंगी दो घंटे हो चुके हैं घर से निकले हुए।
“चलती हूँ यार आंटी से पूछ कर ही तूझे लाई हूँ भगा कर नहीं”
तनु थोड़ी खीझ कर बोली मजाक उड़ाने के लिए मैं ही मिली हूँ न तूझे!
दूकानदार ने चूडिय़ां पैक करते हुए कहा-” दीदी मैंने इस बार बहुत ही सुंदर -सुंदर डिजाइनर राखियां मंगवाई हैं दिखा दूँ!
प्रिया कुछ झेपती सी बोली “नहीं रहने दो फिर कभी आऊंगी इसके लिए।”
अरे! दीदी देख तो लीजिए आपलोग ! पसंद आ जाए तो मैं उसे अलग रख दूँगा आप जब इच्छा हो तब ले लेना।
नहीं…नहीं रहने दो मैं फिर आऊंगी कभी।
प्रिया ने देखा तनु का चेहरा फीका पड़ गया था। वह अपनी सूनी आंखों को छुपाने के लिए इधर -उधर देखने लगी थी। प्रिया तनु के अंदर उठते दर्द को समझ गई थी । वह तेजी से सामान का पैसा पर्स से निकाल कर देने लगी ताकि वह जल्दी से वहां से हट जाए।
दोनों जब वापस चलने लगीं तो दूकानदार ने तनु के तरफ देखते हुए टोका-” दीदी आपने तो कुछ देखा ही नहीं एक से एक डिजाइनर राखियां हैं । भाई के कलाई पर बंधेगा तो वो खुशी से झूम उठेंगे। वह बोलता जा रहा था और तनु अपने आंखों में उमड़ते दर्द को छुपाने की कोशिश कर रही थी।
दीदी इस राखी को देखिए ना इसपर बीच में “भाई” लिखा हुआ है। पहली बार इस डिजाइन की राखी देखी है हमने बहुत प्यारा लग रहा है…. ले लीजिये।
प्रिया ने इशारे से मना किया पर शायद वह नहीं समझ पाया। अपनी धुन में राखियां दिखाए जा रहा था।
तनु के कानों ने जैसे ही “भाई” शब्द सूना उसकी आंखों से जैसे आंसुओं का बादल फट पड़ा। उसने दोनों हाथों से अपने कान को ढक लिया।
प्रिया कुछ कहती उससे पहले ही तनु आंखें पोछते हुए वहां से लौट गई ।
दूकानदार सहम सा गया। वह समझ नहीं पाया कि आख़िर उसने क्या कह दिया जो वह झटके से वापस चली गई । उसने तनु से कहा दीदी मुझे माफ करना,पर मैंने तो कुछ भी नहीं ऐसा कहा। फिर क्यूं चली गई?
प्रिया ने उसे बताया कि तनु का इकलौता भाई आर्मी में था। पिछले साल तनु की शादी होने वाली थी सो उसने ससुराल जाने से पहले आखिरी बार भाई को राखी में आने का जिद किया था ।
इतना कहते ही प्रिया चुप हो गई।
“तो क्या वह नहीं आए?”
अनायास प्रिया की आंखें भी भर आई आंखें पोछते हुए बोली-” आया था तिरंगे में लिपट कर !!”
प्लीज दीदी मुझे माफ कर दीजिए,मुझे नहीं मालूम था कि….
नहीं तुम्हारी गलती नहीं है मेरी ही गलती है उसे यहां लाना ही नहीं चाहिए था। अब दो दिन तक भाई को याद कर सदमे में रहेगी बेचारी।
राखी के दिन सुबह से ही तनु ने अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर के बैठीथी। बेचारी माँ जिन्होंने देश की खातिर पहले पति को खोया फिर बेटे को और अब एक बेटी सहारा है तो उसे भी….।
उन्होंने अपने दिल पर पत्थर रख तनु को बहुत समझाने की कोशिश की । पर सब बेकार थक हार कर वहीं दरवाजे पर बैठकर प्रिया को फोन लगाने लगी।
किसी ने दरवाज़ा खटखटाया माँ ने उठकर दरवाज़ा खोला ।सामने एक लड़का खड़ा था उसने बताया कि कुछ सामान उसे लौटाना है जो तनु उसके दूकान पर भूल आई थी। माँ ने खिड़की से आवाज लगाई तनु तूझे कोई मिलने आया है दूकान पर क्या भूल आई थी?
तनु ने दरवाज़ा खोला और बोली-” माँ मैंने कुछ लिया ही नहीं था क्या भूली थी मैं? “
“इसे भूली थीं आप!”
सामने शिवम का दोस्त अपने हाथों में वही “भाई” लिखा हुआ राखी लेकर खड़ा था ।
तनु कुछ बोलती इससे पहले ही उसने अपना राखी वाला हाथ आगे बढ़ाकर बोला-” दीदी आज के दिन इस भाई का हाथ सूना ही रहेगा क्या?”
तनु भौचक्की सी उसे देख रही थी उसको लगा सरहद से उसका भाई वापस लौट आया है ।
एक बहन का प्यार गंगा -जमुना की तरह अपनी सारी सीमाएं तोड़ उसकी आंखों से फूट पड़ी। अब तक प्रिया भी आ चुकी थी।
माँ ने रोते हुए कहा -“ले देख शिव जी ने तेरे लिए तेरा भाई भेजा है।”
स्वरचित एवं मौलिक
डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर ,बिहार