“तिरस्कार”
बाबूजी आप भी अंदर आइए सब लोग आ चुके हैं। बस आप के लिए ही सब रूके हुए हैं । पूरा कमरा सजा हुआ था। उसी बेल बूटो के बीच सजी-धजी डॉल की तरह तीन साल की भतीजी केक के सामने खड़ी चहक रही थी। बड़े भैया ने बेटी के जन्मदिन पर सबको बुलाया था। बाबूजी हंसते हुए कमरे के अंदर आये । सामने सोफ़े पर छोटे भैया बैठे थे। उनपर नजर पड़ते ही बाबूजी के चेहरे पर से सारी खुशी धुएँ की तरह उड़ गई। जितने उत्साहित होकर वे अंदर आये थे उतने ही तेजी से वे उल्टे पाँव वापस जाने लगे । उनको वापस होते देख छोटे भैया अचानक से उठकर खड़े हो गए और बड़े भैया से बोले -” भैया मैं जरा बाहर जा रहा हूं कुछ जरूरी काम है।”
सब ने रोकने की कोशिश की फिर भी नहीं रूके कमरे से निकल गए।
हमने सोचा था समय ने बाबूजी को बदल दिया होगा। लेकिन व्यर्थ उनका सोच पत्थर का लकीर ही था।
उनके जाते ही बाबूजी का चेहरा फिर से खिल गया। वे खुशी से कीर्ति को गोद में उठा कर प्यार बरसाने लगे। उनका यह रूप देख कर बड़े भैया हमारी ओर देख कर एक दम से झेप गये। उपस्थित मेहमान भांप न लें इसके लिए भैया अपने आप को संयमित करने लगे।
आजतक समझ में नहीं आया कि छोटे भैया के प्रति बाबूजी का ऐसा तिरस्कृत व्यवहार क्यूँ है । यह आज की बात नहीं थी। हमने बचपन से यही व्यवहार देखा था बाबूजी का। छोटे भैया के किसी भी अच्छे काम की कभी सराहना बाबूजी ने की हो किसी ने नहीं देखा।बल्कि उनके द्वारा किए गए कठिन कामों में भी वे नुक्ताचीनी निकालते रहते थे।
किसी खास मौके पर सब भाई बहन को किसी न किसी बहाने बाबूजी का प्यार मिल जाता था लेकिन छोटे भैया को बाबूजी ने कभी प्यार किया हो यह किसी ने महसूस नहीं की। इस तिरस्कार का कारण क्या था हमें नहीं पता। बचपन में तो हमें कोई फर्क नहीं पड़ा लेकिन जब बड़े हुए तब हमें उनकी यह पहेली दिल के कोने को कुरेदने लगी ।
छोटे भैया को जब कोई जरूरत पड़ता जैसे स्कूलों की फीस या किताब कॉपी तो वह अपनी बात बड़े भैया को बता देते क्युकि जैसे ही वे बाबूजी के पास कहने जाते बाबूजी वहाँ से उठकर बाहर चले जाते। बाल मन कहां जान पाता था कि बाबूजी ऐसा क्यूँ करते हैं। फिर बड़े भैया उनकी सिफारिश बाबूजी से करते थे।
अब हम बड़े हो गए थे और बाबूजी के इस सौतेले व्यवहार को देख कर हमारा मन उनके प्रति विषैला हो उठता था। माँ थी नहीं जिससे हम इस पहेली को बुझाने के लिए कहते। आखिरकार बाबूजी ऐसा क्यों करते हैं? वो भी अपने औलाद से !
आज तो हद हो गया सुबह से छोटे भैया की तबीयत खराब थी। एक -एक कर सबने यह बात बाबूजी को बताई पर उन्होंने अनसुना कर दिया। बड़े भैया डॉक्टर को बुला कर लाये। डॉक्टर ने उन्हें हॉस्पीटल ले जाने की सलाह दी। बाबूजी ने कोई ध्यान नहीं दिया। बड़े भैया को इतना कहा कि तुमको ले जाना है तो ले जाओ मेरे पास समय नहीं है। बड़े भैया ने लाख कोशिश की पर छोटे भैया ने साफ मना कर दिया हॉस्पीटल जाने से। शायद बाबूजी की अनदेखी उन्हें चुभ गई थी। तीन दिन तक कराहते रहे पर बाबूजी उनके कमरे में नहीं गये देखने। उनकी हालत खराब होती चली गई। बड़े भैया बाबूजी को बुलाने उनके कमरे में गये । पता नहीं उन्होंने क्या कहा बड़े भैया के जोर से चिल्ला कर बोलने की आवाज आई वो कह रहे थे -” खबर दार बाबूजी आज के बाद मुझे बेटा कहा आपने तो ।नहीं हूँ मैं भी कोई आपका । माँ का मौत एक हादसा था उस हादसे में छोटे की जान भी जा सकती थी। अपने बच्चे को बचाने में माँ की जान चली गई थी, उसमें उस मासूम का क्या दोष था। बिना किसी गुनाह किए वह पिछले दस सालों से आपका तिरस्कार झेल रहा है। यह कैसी सजा दे रहे हैं आप उसे। क्या आप के इस व्यवहार से माँ की आत्मा खुश होती होगी ।बिल्कुल नहीं। रोती होगीं वह और उनकी आत्मा समझे आप। यही तो अन्तर है माँ और बाप में। एक ने अपने बच्चे को बचाने के लिए प्राण दे दिये और दूसरे ने जीते जी उसे तिरस्कृत कर दिया। नौ महीने कोख में पालने का दर्द आप क्या जान पायेंगे क्योंकिआप पिता हैं माँ नहीं। आप तो एक माँ की ममता पर रोज तिरस्कार के पत्थर मारते हैं “।
कुछ देर मौन रहने के बाद बड़े भैया ने कहा-” मैं इससे ज्यादा क्या समझा सकता हूँ, पिता तो आप ही रहेंगे ।लेकिन हाँ एक बात मैं कहूँगा यदि छोटे को कुछ हुआ न तो हम सभी का तिरस्कार आपको झेलना पड़ेगा। “
बड़े भैया बाबूजी के कमरे से निकल कर छोटे भैया के कमरे के तरफ दौड़कर गये। घर के सभी लोग उनके पीछे दौड़े। कमरे का दृश्य देख बड़े भैया दहाड़ मार कर रोने लगे। क्या हुआ,क्या हुआ कहते हुए बाबूजी पिछे से दौड़े । जाकर देखा तो छोटे भैया की आंखे अधखुली हुई थीं जैसे वे बाबूजी के आने की राह देख रही थीं और उनकी सांसे रुक रुक कर चल रही थीं। भैया बाबूजी के सारे तिरस्कारों को अपनी आँखों में समेटे जाने की तैयारी में लगे थे शायद उसी राह पर जिस पर माँ पहले गई थी।
बाबूजी जोर से चिल्लाये-” मुन्ना जल्दी गाड़ी लेकर आओ मेरे लाल को अस्पताल लेकर चलो ,इसे कुछ हुआ तो मैं अपने आप को खत्म कर लूँगा। अपने बेजार बहते आंसुओं का परवाह किए बिना कंपकंपाते हाथों से छोटे भैया को उठाकर कलेजे से लगा लिया।
स्वरचित एवं मौलिक
डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर,बिहार