“दोस्ती”
बाहर स्कूल का वैन बार -बार हॉर्न बजाए जा रहा था। पर अंश था कि घर से निकलने का नाम ही नहीं ले रहा था। पता नहीं आज बैग सम्हालने में इतना टाईम क्यूँ लग रहा था।
मम्मी ने जाकर अंश को टोका- ” बेटा जाओ न जल्दी गाड़ी चली जाएगी तब घर से निकलोगे क्या? ”
“ओह मम्मी जा रहा हूँ न जरूरी सामान रख रहा हूँ।”
“क्या है तुम्हारा जरूरी सामान जरा मैं भी देखू! मैं ने पिछे से आकर अंश से कहा।
“पापा आपको पता भी है आज फ्रेंडशिप डे है और मैंने अपने फ्रेंड के लिए फ्रेंडशिप बैंड और कुछ गिफ्ट खरीदे हैं, वही रख रहा हूँ। ”
मुझे हसीं आ गई मैं बोला-“मुझे फ्रेंडशिप डे तो पता है पर फ्रेंडशिप बैंड का नहीं पता। वह क्या है? ”
अंश जोर से हँसा और मुझे एक राखीनुमा बैंड दिखाकर बोला देखिये पापा यह होता है फ्रेंडशिप बैंड इसे फ्रेंड के कलाई में बाँधा जाता है जिससे फ्रेंडशिप मजबूत होती है समझे! आज हम सब अपने -अपने फ्रेंड्स को यह गिफ्ट करेंगे।
अंश की बात सुनकर मैं वहीं सोफ़े पर बैठ गया अचानक से मुझे कुछ याद आया मैं ने अपने दाहिने हाथ की कलाई को उपर उठाकर देखा और मन ही मन मुस्कराने लगा। अंश मुझे मुस्कराते हुए देख कर बोला कि-” पापा आप मुस्कुरा क्यूं रहे हैं ?”
“अंश बेटा ये निशान दिख रहा है तुम्हें!”
हाँ दिख तो रहा है पर यह तो कटे की निशानी है!
“नहीं बेटा ,यह मेरी दोस्ती की असली निशानी है , फ्रेंडशिप बैंड का नहीं बल्कि फ्रेंड शिप बॉन्ड का!”
अच्छा! पापा जब मैं स्कूल से आऊंगा तो प्लीज मुझे आप दोस्ती के बॉन्ड के बारे में बताना ।
“ओके बाय !”
अंश स्कूल चला गया और मैं अपनी कलाई के निशान में तीस साल पहले के फ्रेंडशिप बॉन्ड को तलाशने लगा …!
सबसे प्यारा मेरा दोस्त था अमित , मेरा यार मेरा प्यार मेरा हसीं मेरा खुशी। साथ खेलना, साथ खाना ,साथ घूमना साथ पढ़ना। माँ ने तो नाम ही हीरा -मोती रख दिया था । हमारी तीसरी कक्षा में हिंदी की कहानियों में दो बैलों की कथा थी जिसमें दोनों बैलों के नाम थे हीरा और मोती।
बस वही हीरा -मोती थे हम।
साथ- साथ पढ़ते हुए हम दसवीं कक्षा में चले गए। नये साल में एक नया नियम लागू हुआ। सभी बच्चों को स्कूल ड्रेस में आना है। जो ड्रेस में नहीं आएगा वह या तो क्लास के बाहर मुर्गा बनेगा या उसे पाँच छड़ी खाने के बाद ही क्लास में जाना होगा ।
मैंने तो पिताजी से कहकर ड्रेस सिला लिया था पर अमित …..l
उसके पिताजी की आर्थिक स्थिति सही नहीं थी सो उसका ड्रेस नहीं सिला पाया। इस वजह से वह स्कूल नहीं जा रहा था।अमित के बिना स्कूल जाना मेरे लिए एक प्रकार से दण्ड के समान ही था।
बहुत सोच विचार कर हमने एक जुगाड़ कर ली। हम दोनों के बीच यह तय हुआ कि हम एक- एक दिन ड्रेस पहन कर जाएंगे। मुझे अपने दोस्त के लिए दण्डित होना मंजूर था लेकिन स्कूल अकेले जाना मंजूर नहीं था। अमित ने मेरा ड्रेस पहन लिया था और मैं बगैर ड्रेस का। अक्सर मैं मुर्गा बनकर अपने हिस्से की सजा काट लेता था।
उस दिन मास्टर जी कुछ ज्यादा ही गुस्से में थे ऐसा खींच कर छड़ी से हाथ पर मारा कि पूरा हाथ ही फट गया ।मैं दर्द से चीख पड़ा। खून रुकने का नाम नहीं ले रहा था। मुझे अस्पताल ले जाया गया। मास्टर जी ने घबराकर घर पर खबर भेज दी। पिताजी के साथ और लोग भी अस्पताल पहुंचे ।मेरी हालत देख पिताजी ने स्कूल पर कारवाई की धमकी दे दी। उन्हें इस बात का गुस्सा था कि जब मैं ड्रेस में था तो फिर क्यों मुझे मारा गया।
प्रधानाध्यापक ने मास्टर जी को बहुत भला बूरा कहा। मास्टर जी बेचारे बार बार कहते रहे कि मैं ड्रेस में नहीं था पर कोई उनकी बात मानने को तैयार नहीं था। होता भी कैसे! मैं अपने घर से स्कूल ड्रेस में ही निकलता था । पहले मैं अमित के घर जाता फिर हमदोनों एक दूसरे के कपड़े बदलकर पहन लेते फिर स्कूल के लिए निकलते।
मुझे तो होश नहीं था ।पर बाद में मैंने सूना कि स्कूल में बड़े अधिकारी आये थे अमित ने उनका पैर पकड़ लिया और खुद को दोषी ठहराकर मास्टर जी को सस्पेंड होने से बचाया। अमित के मूंह से मेरी दोस्ती की दास्तान सुनकर अधिकारी सहित सब के सब ठगे से रह गये थे।
पिताजी ने मेरी एक न सूनी और मेरा नाम कटवा कर शहर के एक बड़े स्कूल में दाखिला दिला दिया और मैं अपने जिगरी दोस्त अमित से जुदा हो गया।
पीछे से पत्नी मुझे झकझोर रही थी।
” अरे!आपके हाथ में क्या हुआ है जो एकटक देखे जा रहे हैं?”
“नहीं कुछ नहीं, दोस्ती बॉन्ड देख रहा हूँ!”
” यानी फ्रेंडशिप बैंड को!”
आंखों से दोस्ती की यादें आंसू बन टप-टप गिर रहे थे मेरी कलाई के निशान पर अपने उस दोस्त के लिए जिसकी तलाश आज भी है
स्वरचित एवं मौलिक
डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर,बिहार