प्यारी है बेटियां
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“रिश्तों “की माला में “मोती” हैं बेटियाँ,
बाबुल तेरे पलकों की “ज्योति”हैं बेटियाँ।
माली हो हरेक “बाग” का बाबुल तेरे जैसा,
फूलों सी हर डाल पर खिलती हैं बेटियाँ।
आए ना कोई आँच कभी के”मान”पर ,
“जिन्दगी” क्या “जान” भी देती हैं बेटियाँ।
धन -दान देने से कोई “दानी” नहीं होता,
बाबुल के लिये “दान “भी होती हैं बेटियाँ।
“पीहर”से मिले प्यार की” गठरी “
ता -उम्र लिये साथ में “फिरती”हैं बेटियाँ।
यह भूमि है भारत की यहाँ हर पिता”जनक” हैं
घर-घर में “सीता” जैसी मिलती हैं बेटियाँ।
मिल जाए कभी वक्त तो पल-भर ये सोचना,
आते कहाँ से “तुम” जो ना होती “बेटियाँ “।
स्वरचित एवं मौलिक
डॉ .अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर,बिहार