“लाल मेरे”
“तेरे” आने की खुशी ने
मुझको दिया था हौसला,
तिनका चुन-चुन कर मैंने
बना डाला था “घोंसला”।
“धूप” बारिश ,आँधी पानी
छू ना ले मेरे “लाल” को,
लाँघकर तेरे पास आये
हिम्मत नहीं था “काल” को।
था नहीं परवाह कितना
खाया चोट पाँख पर,
तुझको तुफाँ से बचाया
“पलकों” में समेटकर।
भूख भी हँसती थी मुझपर
मेरे सूखे “होठ” देखकर ,
अपने नहीं “तेरे” लिए था
रोटी का टुकड़ा चोंचपर।
रह गई थी क्या “कमी”
मेरी “परवरिश” में तू बता ,
“उड़” गया मुझे छोड़कर
हुई थी क्या मुझसे खता!
बांध ली “उम्मीदें” सारी
क्या! मेरा गुनाह था?
तुझसे ही तो “लाल मेरे”
मेरा “जहाँ” आबाद था।
स्वरचित एवं मौलिक
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर,बिहार
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