“सत्तूवाला”
उफ्फ बहुत देर हो गई…..पार्टी से कोई आने ही नहीं दे रहा था,उपर से तेज मूसलाधार बारिश …..गाड़ी चलाने में ही कितनी मुश्किल हो रही है….राजीव बड़बड़ा ही रहा था कि स्ट्रीट लाइट बंद हो गई,धूप्प- अंधेरा ,झींगुर की आवाजें,पत्तों की सरसराहट,मेढ़को की कर्कश टर्र टर्र माहौल को भयभीत कर रहा था,कार स्टार्ट होने का नाम नहीं ले रहा था।
घनघोर अंधकार सूनी रोड….बारिश की महा प्रलय….राजीव के शरीर का खून जम सा गया….दूर कहीं हल्की सी रौशनी दिखाई दे गई,मन को सहारा सा मिला…..।
ऐसा नहीं था कि राजीव उस रास्ते से पहली बार जा रहा था…लेकिन इधर से इतनी रात को कभी भी नहीं गया… तीसपर इस जोगिनीया कोठी वाले रास्ते से रात को कौन जाता है भला…. ! अक्सर इस रास्ते पर दिन में भी दुर्घटनाएं होती रहती हैं ।
कुछ लोग कहते हैं कि यह रास्ता भूतीया हो चुका है। जब भी कोई जाओ तो सम्भल कर जाओ। रात में तो उधर से गुजरने की जरूरत ही नहीं है। इनके बारे में राजीव जितना सोच रहा था उतना ही भयभीत हुआ जा रहा था। खैर…. वह जोर जोर से हनुमान चालीसा पढ़ने लगा और हिम्मत जुटाकर उस दिखती हुई रौशनी के तरफ बढ़ने लगा।
वहां पहुंचने के बाद उसे कुछ साफ साफ दिखाई नहीं दे रहा था। चारो तरफ धूप्प अंधेरा…एक छोटी-सी ढिबरी जो एक बड़े से बरगद के पेड़ के खोह में टिमटिमा रही थी। खौफ से राजीव के कलेजे की धड़कन बढ़ती जा रही थी। उसने गौर से देखा तो रास्ते के दूसरे छोड़ पर पेड़ के पीछे झोंपड़ी दिखाई दे गई।
राजीव अपने आप में बड़बड़ाने लगा-“अरे भाई! यह झोंपड़ी तो मैं रोज ही देखता हूं फिर भयभीत होने की क्या बात है।” राजीव की अटकी साँसे फिर से चलने लगी ।
उसे याद आया कि यह झोंपड़ी तो वह अक्सर ही आते- जाते देखता है। भले ही कभी वह यहां रूका न हो। पर गरीब मजदूरों और निचले तबके के राहगीरों की भीड़ तो लगी ही रहती है यहां पर। दरअसल रात की भयावहता में उसने ध्यान से देखा नहीं था। वह आश्वस्त होकर झोंपड़ी की ओर बढ़ चला।
वहां जाकर देखा तो एक बुढ़ा आदमी ग्लास में कुछ घोल रहा था । ढिबरी की रौशनी इतनी मद्धिम थी कि वह बुढ़े आदमी का चेहरा नहीं देख सकता था। राजीव ने थोड़ी ऊंची आवाज में पुकारा-
बुढ़े ने हाँ में सिर हिलाया और बगल में बिछे खटिया पर बैठ जाने का इशारा किया। राजीव इत्मीनान से खटिया पर बैठ गया। वह जब भी पिछे घूमकर देखता तो बुढ़ा कुछ करता ही दिखता। वह सोच रहा था कि वह बुढ़े के साथ कुछ बातें करता तो समय जल्दी कट जाता। पर बुढ़ा था कि अपने काम में व्यस्त! इन बुजुर्ग लोगों को न काम के सिवा कुछ दिखता ही नहीं है। उसने अपने सिर को झटक कर कहा-“छोड़ो मुझे क्या !! जल्दी बारिश छुट जाए ताकि वह अपने मैकेनिक को कॉल कर बुला ले गाड़ी बनाने के लिए। यही सोचते विचारते पता नहीं कब वह वहीं खटिया पर सो गया।
सुबह शोर गुल सुनकर उसकी आँख खुली…चारो तरफ से अपने आप को लोगों के बीच घिरा पाकर वह भौचक्क था । राजीव उठ कर बैठ गया । इतने में एक आदमी हैरत भरी नजरों से राजीव को देखते हुए बोला-” बाबु साहेब आप यहां कैसे? “
राजीव ने अपनी आँखों को मलते हुए रात की घटना सुनाई और हाथ उठाकर बुढ़े की तरफ इशारा किया जिसने उसे वहां रुकने के लिए कहा था।
लोग उसके इशारे की ओर आंखें फाड़कर देखे जा रहे थे। इस बार राजीव उन्हें हैरत से देखने लगा और बोला-“” आप लोग ऐसे क्यों देख रहे हैं? “
“बाबु आप किसको दिखा रहे हैं?”
राजीव ने पलटकर देखा वहां कोई नहीं था। उसने इत्मीनान से अंगड़ाई लेते हुए कहा-” बुढ़े दुकान वाले काका थे। गये होंगे सुबह उठकर शौच के लिए झाड़ियों के पिछे। “
एक मजदूर अपना ठेला लेकर वहां भीड़ देखी तो रूक गया था उसने जब राजीव की बातें सुनी तो माथा पकड़ कर बैठ गया । पसीने से तर-बतर वह बोला-“बाबु साहेब आप सतूआ वाले बुढऊ की बात कह रहे हैं क्या?”
“हाँ तो!”
“अरे मोरी मइया!” यह क्या कह रहे हैं आप बाबु! चार दिन पहले ही तो बेचारे को एक ट्रक ने कुचल दिया था और वह दौड़े पर ख़तम हो गये थे!”
“क्या कह रहे हो !”
तो फिर वह कौन था जिसने मुझे उस आफत की रात शरण दी थी अपनी झोपड़ी में….
अबकी बार राजीव भय से थर थर कांप रहा था और उसके आगे सचमुच का अंधेरा छा गया था।
स्वरचित एंव मौलिक
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर,बिहार