“मेरी चाहतें”
अपने बड़े से हवेली जैसे घर में बिनोद बाबू अपनी पत्नी सुधा जी के साथ फिलहाल अकेले हैं। अकेले कहने का मतलब है कि बेटियों की शादी हो चुकी है ।दोनों बेटों में से एक विदेश में सेटल है और दूसरा बंगलूर में इंजीनियर है। वही कभी-कभी पर्व- त्योहार में आ जाता है तो दोनों माँ- बाप की सांझ होती जिंदगी में थोड़ी रौशनी हो जाती है। विदेशी बेटे ने सारी सुख- सुविधा का सामान यहां रख दिया है।घर के साथ ही साथ नौकर चाकर ,गाड़ी ड्राइवर सब कुछ उसने रखवा दिया है। किसी चीज की कमी नहीं है बस कमी है तो उस बेटे की ही है .. । उसका कहना है कि उसके पास यहां आने की कोई वजह नहीं है..। शायद जब माँ- बाप नहीं रहे तब कहीं…….
अपने कमरे में लेटे लेटे बिनोद बाबू ने आवाज लगाई
“सुधा,सुधा कहां हो तुम?”
“आ गई,आ गई ,कहते हुए सुधा जी ने कमरे में टेबल पर गरम पानी का जग और चाय की प्याली रखते हुए कहा “कहां रहूंगी किचन साफ कर रही थी ,बोलिए क्या बात है?
“क्यूँ तुम्हारी बसंती ताई नहीं आई काम करने ।”
“नहीं, कल ही कहकर गई थी दो दिन नहीं आयेगी उसके घर दोनों बेटियाँ बच्चों के साथ आने वाली हैं सर्दी की छुट्टियों में। बहुत खुश थी इसलिए मैंने मना नहीं किया।”
“आप बोलिए आप क्या कह रहे हैं ।”
“हाँ वो ड्राइवर आया था तीन दिनों की छुट्टी मांग रहा था तो सोचा तुमसे पूछ लूं। कहीं जाने का प्लान होगा तो मना कर दूँगा। “
सुधा जी बोलीं-” अरे, नहीं नहीं जाने दीजिये उसे साल भर का अंतिम दिन है बाल बच्चों के साथ खुशियां मिलकर बितायेगा। हम दोनों कहां जाएंगे अब इस उमर में घूमने? बाल बच्चे रहते तो अलग बात थी। देखा नहीं पिछले बार शालिनी बिटिया हमें जबरदस्ती ले गई थी मंदिर दर्शन कराने नए वर्ष में।
बातें करते हुए दोनों ने एक साथ चाय पी। सुधा जी ने पति को खांसी की दवा खिलाई और कहा-” आप आराम कीजिये मैं धीरे-धीरे कुछ खाने के लिए बनाती हूँ।”
वह सीढियों से नीचे उतर रही थीं तभी छोटे बेटे का विडियो कॉल आया। उसे देख उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। देखते ही बोलीं-” कैसे हो बेटा?”
“बहू कैसी है?”
“बच्चे कैसे हैं?”
“कब आ रहा है यहां? पिछले साल ही दो दिन के लिए आया था वह भी अकेले अकेले।”
“ओह माँ एक बार में कितने प्रश्न पूछेगी।”
“कैसे न पूछूं ?बात कराओ बहू और बच्चों से।”
“अभी वह बात नहीं करेंगे, क्युकि सब के सब पिकनिक की तैयारी में लगे हैं। मैंने भी सोचा कि कल पता नहीं टाईम मिलेगा या नहीं इसीलिए आज ही हाय- हैलो कर लेता हूं।”
बेटे की बात सुनकर सुधा जी के दिल में कुछ टूटता सा महसूस हुआ। वह चुप हो गईं।
बेटा बोला-” क्या हुआ माँ तुम अचानक से कहां गुम हो गई। क्या तुम नहीं चाहती कि मैं बच्चों के साथ इंजॉय करूँ?”
“सुधा जी ने हड़बड़ाहट में कहा-” नहीं नहीं बेटा मैं तो..।”
“मैं तो क्या ?
असल में कभी तुम लोगों ने लाईफ में इंजॉय किया ही नहीं तो क्या समझोगी जिंदगी जीने का सही तरीका! जिंदगी सिर्फ पेट पूजा करने तक ही सीमित नहीं है माँ समझी। “
सुधा जी की मोबाईल वाले हाथ सर्द होते जा रहे थे। वह सोच रही थीं कि यह वही बेटा है न जिसकी फर्माइश पूरी करने के लिए पिता ने ओवरटाईम की नौकरी शुरू कर दी थी और जब तक इसकी फर्माइश पूरी नहीं होती थी तब तक रात के बारह बजे तक यह बैठकर पिता के आने का इंतजार करता था।एक दिन भी बिना अपने पसंद का खाना नहीं खाता था।बेचारे पिता इनके ख्वाहिश पूरी करने के लिए सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक और फिर रात आठ बजे से बारह बजे तक की नौकरी करते थे उसके बाद समय कब था जो हम जिंदगी के इंजॉय का मतलब समझते। “
“माँ , कुछ बोलो भी सिर्फ मूंह दिखाने का टाईम नहीं है मेरे पास। आखिर तुम लोग चाहती क्या हो?”
सुधा जी की आँखें भर आई उन्होंने मन ही मन में सोचा कि बेटा मैं तो बस यही चाहती हूं कि जैसे बचपन में तू हमारे बगैर एक पल नहीं रह पाता था वैसे ही अब हम इस बुढ़ापे में तेरे बगैर में नहीं रह पायेंगे। पर वह बोल नहीं पाई सोचा कहीं बेटा गुस्से में न आ जाए इसलिए बात बदलते हुए बोलीं-” मैं तुम्हारे पिताजी के बारे में सोच रही थी उन्हें कुछ दिनों से बुखार के साथ खांसी भी बढ़ गई है। “
अरे! उनकी तो आदत है कंजूसी करने की। बोलो डॉक्टर को दिखा लेंगे। मैं ड्राइवर को बोल देता हूं लेकर चला जाएगा।”
सुधा जी कुछ कहना चाह रही थीं तभी उधर से फोन कट गया।
मोबाईल हाथ में लिए सुधा जी पति के पास कमरे में आई और सोफ़े पर धम्म से बैठ गईं।
पति ने बिस्तर से उठते हुए कहा-” क्या हुआ सुधा?
“रुआँसी क्यों हो गई?”
“क्या बात है?”
“नहीं वो बिट्टू का फोन था,सोचा आपसे भी बात कर लेगा इसीलिए बात करते -करते ऊपर आ रही थी…..लेकिन
“लेकिन पता नहीं क्यों फोन कट गया उसका ।”
“कट नहीं गया ……काट दिया होगा तुम्हारे बेटे ने। मुझसे क्या बात करेगा,बुढ़े और बोरिंग आदमी से। “
“ऐसे क्यों बोले जा रहे हैं आपके लिए भी पूछ रहा था वह ।”
“इतनी ही चिंता थी मेरी उसे तो दो मिनट में हाल चाल पूछ लिया होता। इतनी भी क्या जल्दी थी कि फोन काट दिया उसने ।”
सुधा जी चुप थीं उनको भी यह बात कचोट रही थी कि बेटे ने एक बार भी पिता से बात करने की इच्छा जाहिर नहीं की।
बिनोद बाबू ने हंसते हुए कहा-” सुधा क्यों अपने आप को झूठी दिलासा दे रही हो। देना है तो मेरी दवाइयां दे दो खांसी बढ़ रही है। “
सुधा जी को बेटे की बात अंदर तक चोट कर रही थी। बहुत बुरा लगा था उन्हें। लेकिन पति की बातों को काटते हुए बोलीं-” अरे बिट्टू कह रहा था कि उनलोगों को न्यु ईयर सेलिब्रेशन पार्टी में शामिल होने जाना है। शायद इसीलिए वह जल्दी में था।”
“अच्छा चलो बताओ माँ-बेटे में क्या -क्या बाते हुईं? “
सुधा जी झेपते हुए बोलीं-” कह रहा था कि मैं ड्राइवर को फोन पर कह दूँगा वह हमें हम जहां चाहें घूमा फिरा देगा। “
“अच्छा, तुम्हारा बेटा तो काफी समझदार हो गया है सुधा ।”
आजकल के बच्चों के लिए कितना आसान है माँ- बाप को सीख देना। जिनके बगैर हमने कभी एक निवाला नहीं खाया।उनके पास टाईम नहीं है न कि बाप से दवा के लिए ही पूछ लें।
दरवाजे पर दस्तक हुई तो सुधा जी ने उठकर पीछे देखा। ड्राइवर मूंह लटकाये खड़ा था। पूछने पर बोला साहेब आज के बाद मैं नहीं आऊंगा। मुझे ऐसी नौकरी नहीं करनी है। बिनोद बाबू ने पूछा-” क्या हुआ?
साहेब मैंने छुट्टी लिया था अपने माँ- बाप से मिलने गाँव जाने के लिए। लेकिन छोटे साहब ने फोन कर मुझे मना कर दिया छुट्टी लेने से। यदि आपलोगों की वजह से मैं अपने माँ बाप से नहीं मिलने जाऊँ तो बेकार ही है ऐसी नौकरी। “
सुधा जी ने पति की ओर उनकी आँखों में झांकते हुए कहा-” काश ! ड्राइवर की तरह ही हमारे बेटे ने भी फोन पर यही कहा होता!”
स्वरचित एंव मौलिक
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर,बिहार